भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गळगचिया (10) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 4 मार्च 2017 का अवतरण
एक छांट पड़ी’र दूजी छांट पड़ी, बादळियो अरड़ाट कर’र ओसर ग्यो।
आभो बोल्यो-अरै तूं तो माल मलीदो बांध’र ऊपर ल्यायो हो नीं? पाछो नीचै ही किंया खिंडा दियो?
बादळ कयो- ऊपरां कठेई मेलण नै ठौड ही को लादी नीं, बोझायो कती’क ताळ मरै हो?