भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गळगचिया (33) / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 17 मार्च 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आसोज रो महीनूं। नान्ही सी क बादळी ओसरगी। एवड़ रै गुवाळियै रो अलगोजो गूंज उठयों-रिम झिम रिम झिम मेवलो बरसै अतै में ही अचाणचूको पून रो लैरो आयो रे बादळी उड़गी। करड़ी तावड़ी निकलगी। खेत में निनाण करतो करसो बोल्यो-आसोजाँ रा तप्या तावड़ा काचा लोहा..........।
मिनख री जीभ में कठेई हाड कोनी।