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गळगचिया (41) / कन्हैया लाल सेठिया
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जगत रो दोस देखताँ आँख अघाईजी ही कोनी। एक दिन एक छोटो सो‘क रावळियो आँख नै देखण नै आँख में बड़ग्यो। आँख रीस स्यूँ लाल हूगी पण रावळियो क्याँ रो डरै हो ? आखर में आँख रोवण लागगी जद लार छोडी।