भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गळगचिया (41) / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:46, 17 मार्च 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जगत रो दोस देखताँ आँख अघाईजी ही कोनी। एक दिन एक छोटो सो‘क रावळियो आँख नै देखण नै आँख में बड़ग्यो। आँख रीस स्यूँ लाल हूगी पण रावळियो क्याँ रो डरै हो ? आखर में आँख रोवण लागगी जद लार छोडी।