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गळगचिया (36) / कन्हैया लाल सेठिया

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पानड़ा कयो- डाळाँ म्हे नहीं हूँता तो थे कत्ती अपरोगी लागती ?
फूल कयो- पानड़ाँ म्हे नहीं हूताँ तो थे कत्ता अड़ोळा लागता ?
फळ कयो- फूलाँ म्हे नहीं हूँता तो थाँरो जलम ही अकारथ जातो ?
फूळ में छिप‘र बैठ्यों बीज सगळाँ री बात सुण‘र
बोल्यो-भोळाँ में नहीं हूँतो तो थे कोई कोनी हूँता।