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गळगचिया (63) / कन्हैया लाल सेठिया
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नीमड़ै रो रूँख मतीरै री बैल नै हँस‘र कयो म्हारी टोखी तो आभे नै नावड़ै है‘र तूँ धूड़ पर ही पसरयोडी पड़ी है ?
मतीरै री बैल बोली पैली थारै फळ कानी देख पछै म्हारै स्ँयू बात करीजे!