भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बस में पिता / उदय प्रकाश

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:15, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने बिल्कुल साफ़-साफ़ देखा

उस बस पर बैठे

कहीं जा रहे थे पिता


उनके सफ़ेद गाल, तम्बाकू भरा उनका मुँह

किसी को न पहचानती उनकी आँखें


उस बस को रोको

जो अदृश्य हो जाएगी अभी


उस बस तक

क्या

पहुँच सकती है

मेरी आवाज़ ?


उस बस पर बैठ कर

इस तरह क्यों चले गए पिता ?