भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीत / अरुण कमल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:39, 25 मई 2008 का अवतरण
’इ’ ने सीना तान कर घोषणा की
नेस्तानाबूद हो गया है ’ई’
बस्तियों में एक बिल्ली भी बाक़ी नहीं
ख़ाक हो गया है समूचा मुल्क
बस्तियों में रोने को एक बच्चा भी बाक़ी नहीं--
’ई’ ने भी घोषणा की--
ख़ाक हो गया है मुल्क सारा
वो देखो जल रहा है ’इ’ का आख़िरी मकान
दोनों अपने-अपने वतन की राख़ पर खड़े थे हँसते
दोनों ख़ुश थे
दोनों थे विजयी, विजयी प्रधान!