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लालटेनें-2 / नरेश सक्सेना

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बचपन के चेहरों और किताबों की तरफ़ लौटते हुए
वे सबसे पहले मिलती हैं
सियारों के रोने की आवाज़ों के बीच
एक शुभ संकेत की तरह हमारी तरफ़ आती हुईं

एक हाथ से दूसरे हाथ में जातीं
भरोसे की तरह
सोए हुए घरों में जागतीं
उम्मीद की तरह

देर रात
किसी सूने बरामदे में अकेली दिखाई दे जातीं
धुआँ देती और भभकती हुईं।