भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतिरोध के शब्द / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 20 दिसम्बर 2017 का अवतरण
डरती हुई खामोशियाँ
पहनकर लफ्जों का मन
निर्भीक होकर दौड़ती हैं
अंधेरी सुरंगों में एक उम्मीद नन्ही सी
उजालों का सफर आसान करती हुई
भीड़ से डरता मन
रखता है उंगलियों भर किस्से
गिनतियों भर लोग
कदमों भर दुनिया
नजर भर आकाश
मुठ्ठी भर ज़िन्दगी
तन्हा चल रहे लोग
हारे हुए हों, जरूरी नहीं होता
नहीं होता जरूरी
कि सवालों के जवाब तुरंत ही गढ़ें जाएँ
कि प्रतिरोध में डाल दिए जाएँ हथियार
समय सिद्ध करेगा किसी दिन
शब्द-सामर्थ्य, शक्ति
विरोध में स्वर मुखर हों, मौन नहीं...
प्रतिरोध का प्रतिदर्श
शब्द, शब्द और शब्द।