भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सावन के भरोसा / मनीष कुमार गुंज
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:26, 18 सितम्बर 2017 का अवतरण
आबो सावन झटकी के
बादल बरसो लटकी के
तबलै जेठ ते फाटै धरती
तीन कोस तक खेती परती
चापाकल कुइयां के पूछै
पोखर सुखलै सटकी के।
पानी लेली अधमरूओ छै
खीरा ककरी सब करूओ छै
चिड़ियाँ चुनमुन के साथें सब
बच्चा-रहलै रटकी के।
गरमी गुम्मस नींन उड़ाबै
मच्छड़ भन-भन खूब कुढाबै
मच्छड़दानी में घुंसी के
काटै हपकी हपकी के।
पड़लै झरिया भरलै खेत
नदी-नदी में खल-खल रेत
दौड़ी-दौड़ी खूब नहाबो
भरो खेंघारी मटकी के।