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पछिया वयार / बिंदु कुमारी
Kavita Kosh से
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मातलोॅ पछियां झकझोरै छै
झूमैं छै शराबी रं आमोॅ के ठार।
गमकै छै चंदन लहकै छै कचनार
सरंङोॅ नी बरसै छै, लागलोॅ छै सरंङोॅ मेॅ आगिन।
ई मेघराज छै पछियां हवा पेॅ सबार।
पछियाँ बतास बहै, झकझोरै छै डार।
पछिया बतासोॅ सेॅ उखड़ी गेलै
बड़का-बड़का गाछ।
धरती पर गिरी गेलै
सोन-चिरैया के घोंसला
पक्षी-चिड़ैया कानै मंडरावै
विनाश रोॅ ई सरदैलोॅ छाया।
पसरी गेलै चारों ओर
एक सन्नाटा-खामोश होय गेलै बातावरण।
आरो यही विनाश रोॅ कोखी सेॅ-
जनमै छै एक महाकाव्य।
आबै बाला हर पल
ई महाकाव्य मेॅ समाय जाय छै
जिनगी रोॅ एक-एक पल।