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सोचो / कैलाश पण्डा

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उभरती हुई
एक सुनहरी कल्पना
अन्तर मन में
हर श्वास के स्वर में
पलता स्वप्न
धड़कन चलती
दृढ़ राह के आधार पर
लौह पथ गामिनी सी
कंकड़ पत्थर के पठार पर
जीवन की गति
तीव्र तराश पर
गांव, राष्ट्र
पलता विभिन्न आकार प्रकार पर
सरसती विकटता के मध्य
ज्ञान गार्गी
नवंरग लिए नर नीरोह सा
दिवाल के पीछे भी
कोई श्वास लेता
गुनगुना रहा
यापन करता
क्षण-क्षण तुम्हारी तरह
सोचो !