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परिवर्तन / कविता भट्ट

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दीर्घ श्वास की लघु ताल पर
धीमे-धीमे जीवन की लय पर
खोता चला गया कहीं
उसका निश्छल-सुंदर-सा मन
एक था उसका कोमल अंतःकरण
क्या मिल गया उसे पाकर यौवन
जिसके प्रकट होने पर
उलझता गया मन
सुख-समृद्धि की परिभाषा में
धन-वृद्धि की अभिलाषा में
एकत्र करना चाह रहा था
असीम भौतिक सुख-साज
भूल गया वह तुतलाना
माँ की गोदी में सिर रखकर सो जाना
जिस सुख के समक्ष सारे सुख हैं निरर्थक
कुर्सी, धन, मान प्रसिद्ध नाम का यद्यपि सुख।