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बनाते हो बहाने अक्सर / विजय वाते
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:09, 19 जून 2010 का अवतरण
एक हम हैं, कि तके जाते हैं, रस्ते अक्सर|
एक तुम हो कि बनाते हो, बहाने अक्सर|
यों ही मुश्किल है भुला देना पुरानी यादें,
और तुम हो कि मेरी याद में आते अक्सर|
जब नदी है तो यहाँ बाढ़ भी आएगी ज़रूर,
तुम संभल जाओ, टहलते हो किनारे अक्सर|
साथ रहते जो मेरे, शायरी कराने लगते,
रोज़ फ़िर नया शेर सुनाते अक्सर|
इन दिनों तुमको हुआ क्या है, बताए कोई,
क्यों परेशान नज़र आते हो "वाते" अक्सर|