भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन जल्दी जल्दी ढलता है / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 22:55, 8 जुलाई 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!


हो जाए न पथ में रात कहीं,

मंजिल भी तो है दूर नहीं-

यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्‍दी-जल्‍दी चलता है!

दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!


बच्‍चे प्रत्‍याशा में होंगे,

नीड़ों से झाँक रहे होंगे--

यह ध्‍यान परों में चिड़‍ियों के भरता कितनी चंचलता है!

दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!


मुझसे मिलने को कौन विकल?

मैं होऊँ किसके हित चंचल?--

यह प्रश्‍न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!

दिन जल्‍दी-जल्‍दी ढलता है!