भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बैठी छज्जे पर चिडया / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 2 जुलाई 2010 का अवतरण
बैठी छज्जे पर चिड़या
जाने किसको
टेर रही है
बैठी छज्जे पर चिड़या
हमने बहुत बार देखा
उसको आते-जाते घर में
उड़ती फिरती --
पता नहीं कितनी ताक़त
उसके पर में
तिनके-तिनके
धूप हवा में
बिखराती दिन-भर चिड़या
यह चिड़या सूरज की बेटी
इसके पंख सुनहले हैं
जोत उन्हीं की
जिससे दमके
सारे महल-दुमहले हैं
मंदिर में
आरती जगाती
रोज सुबह आकर चिड़या
चमक रहे हीरे-पन्ने
चिड़या की उजली आँखों में
रात हुए
है यही दमकती
आम-नीम की शाखों में
आधी-रात
चन्द्रमा उगता
होती इच्छाघर चिड़या।