भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ आकाश (कविता) / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:24, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण (कुछ आकाश. / प्रेमशंकर शुक्ल का नाम बदलकर कुछ आकाश (कविता) / प्रेमशंकर शुक्ल कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूरा करने के लिए

बचा है

कुछ आकाश


गा देता है जो जितना

हो जाता है

उतना वह पूरा


अपनी चहचह से चिड़ियाँ

बना रहीं नित नया आकाश

गाती-गुनगुनाती मेहनतकश स्त्रियाँ

आकाश के रचाव को

बढ़ा रहीं आगे


अधूरा है आकाश

कह देता है जो जितना

हो जाता है उतना वह पूरा


जीवन की आवाज़ और रंगत से ही

बनता-तनता है इसका वितान

जीवन का पानी है

जिन आँखों में

बनाने के अध्याय में

शामिल है नाम

उनका ही।