द्रुपद सुता-खण्ड-04 / रंजना वर्मा
कहो सहदेव, प्रिय नकुल, वृकोदर हे
कौरव-सभा में आज तुम को क्या प्रेष्ट है।
मौन ही रहोगे, सह लोगे अनाचार यह
क्षम्य क्या सदा तुम्हारे मानस में ज्येष्ठ है ?
भीम, रहते ही भीम गदा के, भुजाओं के भी
कौरवकुचालकरनेमेंयूँसचेष्ट है।
किसको पुकारूँ ऐसे कठिन समय आज
हरइकसुहागमेराहुआनिश्चेष्टहैं।। 10।।
मान मर्यादा हार बैठे हैं सुयोधन से
पाँच कोनों वाली सभा हुई षट्कोण है।
दण्ड दिया करते थे जग में अधर्मियों को
चुप हो के बैठे कुन्त, गदा, धनु, त्रोण हैं।
नीचे किये नैन, कुछ कहते न बैन आज
बैठेधर्मराज-युतपांचोपति मौन हैं।
पूछती हूँ जग से, सभा से औ स्वयं से भी
लाज जो बचा न सके मेरे वह कौन हैं।। 11।।
सच ही कहा है किसी ज्ञानी या सुबुद्ध ने ये
प्रीति-पात्र अपना बनाओ किसी एक को।
जिसके अनेकों मीत, स्वार्थ के सगे हैं सारे
मीत जो बनाओ तो बनाओ किसी एक को।
दीपक असंख्य बिंदु बिंदु भर तेल वाले
सुलग बुझेंगे तो जलाओ दीप एक को।
एक ही सु-पति वाली कुटिया की रानी भली
पाँच पति वाली न बनाओ किसी एक को।। 12।।