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वास्तविकता / अनुभूत क्षण / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
सँभलते - सँभलते...
समय तीव्र गति से गुज़रता गया !
सब व्यवस्थित बिखरता गया !
हस्तगत था अरे जो
अचानक फिसलता गया ....
हर क़दम पर
सँभलते-सँभलते !
हर तार टूटा
सँवरते-सँवरते
कि फिरफ़िर उलझता गया !
बंध हर और कसता गया ;
सूत्र क्रमश: सुलझते-सुलझते
उलझता गया,
हर क़दम पर
सँवरते-सँवरते !
ज़िन्दगी कट गयी ज़िन्दगी
सीखते-सीखते,
खो गये कंठ-स्वर
चीखते-चीखते,
शास्त्र संगीत का
सीखते-सीखते !