भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोलै नाहीं पिया / मनोज कुमार ‘राही’

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:58, 21 जुलाई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखहूँ न बोलेॅ पिया,
क्या कहूँ सखिया,
काटे नाहीं कटे रैना,
बीते नाहीं बेरी रतिया
मुखहूँ न बोलेॅ

सासु गुजर गइली,
ससुर भइलै परदेशिया,
घरवा में अकेली हम्में
कोय न ननदिया
मुखहूँ न बोलेॅ

कैसे मनाऊँ हाय !
रूठल मोर पिया,
कुछ नाहीं सुझे मोरा,
धड़केला छतिया
मुखहूँ न बोलेॅ

सोलह श्रृंगार करली,
लाख मनाई हारीं,
माने नाहीं मोर पिया,
आंसुवा बहावे अँखिया
मुखहूँ न बोलेॅ

बसंती बयार बहेॅ,
अंगअंग लगावै अगिया,
सोना के यौवनमाँ बीते,
कैसे समझाऊँ पिया
मुखहूँ न बोलेॅ