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खड़े हैं लाखों / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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34
कँटीली राहें
पथरीली चढ़ाई
हाथ थामना !
35
खड़े हैं लाखों
रक्तपायी पथ में
बचके चलो !
36
शंकित दृष्टि
बींधती तन-मन
दग्ध जीवन !
37
भाग्य का लेखा
भला करके भी तो
सुख न देखा !
38
तुम्हारी आँखें-
आँसू का समन्दर
पीना मैं चाहूँ।
39
पोंछ लो आँखें
सीने में छुप जाओ
क्रूर हैं घेरे ।
40
यज्ञ रचाया
मन्त्र भी पढ़े सभी
शाप न छूटा।
41
जलती रही
समिधा बन नारी
राख ही बची ।
42
छूटे तो छूटे
चाहे प्राण अपने !
हाथ न छूटे।
43
सिन्धु तरेंगें
विश्वास की है नैया
पार करेंगे।