भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इन शब्दों में / मनमोहन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 5 अक्टूबर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन शब्दों में
वह समय है जिसमें मैं रहता हूँ

ग़ौर करने पर
उस समय का संकेत भी यहीं मिल जाता है।
जो न हो
लेकिन मेरा अपना है

यहाँ कुछ जगहें दिखाई देंगी
जो हाल ही में ख़ाली हो गई हैं
और वे भी
जो कब से ख़ाली पड़ी हैं

यहीं मेरा यक़ीन है
जो बाक़ी बचा रहा

यानी जो ख़र्च हो गया
वह भी यहीं पाया जाएगा

इन शब्दों में
मेरी बची-खुची याददाश्त है

और जो भूल गया है
वह भी इन्हीं में है