भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्शन-लालसा / पुरुषार्थवती देवी

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:13, 29 दिसम्बर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।


नाथ! पड़ा सूना मन-मन्दिर कब उसको अपनाओंगे।
नेत्र थक गये राह देखते कब तुम फिर से आओगे॥

हूँ पगली मतवाल या मैं फिर भी हूँ चरणों की दास।
प्रेम-तरंग हिलोरें लेतीं आओ, एक बार फिर पास॥
मानस-सर के हंस तुम्हीं हो, हो मेरी तन्त्री के तार।
मेरी जीवन-नैय्या के हो कर्णधार, पकड़ो पतवार॥
देकर झूठे धैर्य्य नाथ! अब नहीं मुझे ठग पाओगे।
देर करोगे तो क्या होगा, शून्य कुटी को पाओगे॥