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प्रिय तुम / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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तुम्हारी हर अदा दिल की कशिश को मौन छूती है ।
यही लगता किसी शुभ सूचना की देवदूती है ।
कहाँ तक मैं बताऊँ क्या असर इसका जमाने पर;
ये गौरी की कृपा जैसी, महाशिव की विभूती है ।

कभी मत इस तरह बोलो, चहकती सी रहो हरदम।
मिटाती तुम रहो अपनी हँसी से विश्व भर का गम ।
जिधर तुम आँख को फेरो उधर हो फूल की वर्षा;
वहाँ त्योहार हो जाये, जहाँ पर हों चरण छमछम ।

तुम्हारी देह की आभा हमें रस्ता दिखाती है ।
तुम्हारे नेह की खुश्बू हमें जीना सिखाती है ।
तुम्हारी तनिक अलसाई सुरति-रंजित सुधा-सिंचित
निगाहें ही जिलाती हैं, हमें सब कुछ लिखाती हैं ।

तुम्हारी माँग में लाली सजनि! ज्यों प्रात की ऊषा ।
तुम्हारी मुस्कुराहट जिन्दगी की प्राण - मंजूषा ।
तुम्हारी देह पर हर वस्तु बन जाती स्वयं गहना,
हृदय को मोहती सचमुच तुम्हारे वेश की भूषा ।

तुम्हें देखा लगा ऐसा धरा पर चाँद आया है ।
गगन से स्वर्ग की खुशियाँ चुराकर साथ लाया है ।
तुम मानो या नहीं मानो , मगर यह सत्य है प्रियवर;
बहुत सौभाग्य से तुमने अनूठा रूप पाया है ।