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धनकुल का सुर / पूनम वासम

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तुम्हारे लौट आने मात्र से लौट आएगा
गाँव का पुराना तालाब
हंसने लगेगा महुए का पेड़
तिरडुडडी<ref>दण्डामी-माडिया नृत्य के दौरान उपयोग की जाने वाली लोहे की छड़ी जैसा उपकरण जिसे नृत्य के दौरान धरती पर बार -बार पटकने से खनक पैदा होती है ।</ref> भी अपना मौन व्रत तोड़कर
एक साथ छनक उठेंगी ।।

तुम लौटोगे तो लौट आएँगी पोलई<ref>धान की मिंडाई के बाद जब कुछ विशिष्ट जातियों के लोग तथा चरवाहे खेत मालिक के घर जाते हैं तब उन्हें भेंट के रूप में धान दिया जाता है। बस्तर में हल्बी-भतरी आदिवासियों के बीच यह प्रथा प्रचलित है ।</ref> की खुशियाँ
एक बार फिर धोरई बाँधेगा बैलों को गोठान में
जेठा और चुई पहनाकर
तुम्हें पता है न कि सिंगोटी<ref>गाय बैलों की पूजा के बाद उनके सींग पर नया कपड़ा बान्ध दिया जाता है फिर उन्हें दौड़ा दिया जाता है, उस कपड़े को चरवाहे निकालते हैं। इस प्रथा को सिंगोटी देखना कहते हैं।</ref> देखना शुभ माना जाता है ।

धनकुल<ref>हण्डी, सूप, धनुष और बाँस का प्रयोग करके बनाया गया एक वाद्ययन्त्र ।</ref> का सुर लग ही नहीं रहा
तुम्हारी उँगलियों के छुवन के बिना ।
सारे देवी -देवताओं का जी उकता गया है तुम्हारे इन्तज़ार में
चौपाल का सूनापन झेलते-झेलते नीम का पेड़ बुढ़ा रहा है ।
उसके झुर्रीदार तने,
तुम्हारी खोई हुई हंसी के दानों को
स्मृति-चिन्ह के स्तम्भ में एक-एक कर चिपका रहे हैं
खलिहान को मस-डाण्ड<ref>खलिहान में रखे गए धान को कोई चुरा न ले इसलिए कोयले से खलिहान के चारों तरफ़ पूजा करके लकीरें खींच दी जाती हैं।</ref> से घेरने के बाद भी वहाँ
दुख की पकी फ़सल का ढेर लगने लगा है ।

पान -टुटानी का काम अधूरा है ।
देव- डँगई का रंग भी फीका है एक तुम्हारे न होने से
‘नाँगर धरला भीम, पानी देला इन्दर’
वाली कहावत में जान फूँकने वाले तुम अन्तिम कड़ी हो ।

मुझे यक़ीन है कि तुम आओगे लौटकर
जंगल की अन्धेरी छाँव वाली गुफ़ा के सारे
तिलस्म तोड़कर
तुम भेजोगें एक दिन अपने ‘बाबा ‘ को मेरे घर
फूल खोंचने<ref>लड़की के घर वर पक्ष से घर के बुजुर्ग जाकर रिश्ता तय करते हैं ।</ref>
तुम्हे यह जानकर ताज्जुब होगा
कि आज भी पूरा गाँव मरमी पाटा<ref>विवाह- गीत</ref> गाने के लिए उत्सुक है
सिर्फ़ तुम्हारे लिए ।

कि तुम्हारे लौट आने की ख़बर मात्र से
लौट आएँगी कैलेण्डर की सारी बीती तारीख़ें ।

शब्दार्थ
<references/>