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मोर संगी / हेमनाथ यदु
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ये मोर संगी सुमत अटरिया, चढ़बोन कइसे मन ह बिरविट बादर है।
जतन के मारे बनत बिगड़थे, आंखी आंजे काजर है।
भाई भाई म मचे लड़ाई, पांव परत दूसर के हन
फ़ूल के संग मां कांटा उपजे, अइसन तनगे हावय मन
धिरजा चिटको मन म नइये, ओतहा भइगे जांगर हे। ये मोर
बात बात म बात बढ़ाके, दूरमत ल मोलियाये हन।
परबर चारी बना बनाके, अपने आपन हंसाये हन
भाई के अब भाव नई रहिगे बनगे घुनहा खांसार हे। ये मोर
लड़त कछेरी नर नियांव म, घर ह धलोक मठावत हे
नाव नठागे गांव भठागे, सेवत करम ठठावत हे
घर ला फोरत फोर करइया हासत एक मन आगर हे। ये मोर
दाई दादा के मयां ह जागे तिरिया माया सजागे हे।
कोन ले कहिबे कइसन कहिबे, मन हा घलोक लजागे हे
कल किथवन में अंकल सिरागे, सुक्खा मयां के सागर हे मोर