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विसंगति / शशिप्रकाश
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कुछ ज़िम्मेदारियाँ हैं
कविता जिन्हें पूरा नहीं कर पा रही है ।
कुछ विचार हैं
कविता जिन्हें बान्ध नहीं पा रही है ।
कुछ गाँठें हैं
कविता जिन्हें खोल नहीं पा रही है ।
कुछ स्वप्न हैं
कविता जिन्हें भाख नहीं पा रही है ।
कुछ स्मृतियाँ हैं
कविता जिन्हें छोड़ नहीं पा रही है ।
कुछ आगत है
कविता जिन्हें देख नहीं पा रही है ।
कुछ अनुभव हैं
कविता जिनका समाहार नहीं कर पा रही है ।
यही सब कारण हैं
कि तमाम परेशानियों के बावजूद
कविता फिर भी है
इतना सब कुछ कर पाने की
कोशिशों के साथ
अपने अधूरेपन के अहसास के साथ
अक्षमता के बोध के साथ
हमारे इतने निकट ।
कविता को पता है
अपने होने की ज़रूरत
और यह भी कि
आने वाली दुनिया को
उसकी और भी अधिक ज़रूरत है ।
(सितम्बर, 1995)