भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

युवा रवानी / सुरंगमा यादव

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:02, 19 जनवरी 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

89
कैसी विदाई !
छोड़ कर भागते
ये बंधु-भाई।
90
डर का डेरा
मानव का उसमें
आज बसेरा।
91
शक्ति उद्दाम
मानव गति पर
आज विराम ।
92
पथिक बिन
सूनी सड़कों पर
भटकें दिन।
93
कोयल कूकी
ये सूनी अमराई
कभी न देखी।
94
वक़्त ने दिया
आज वक़्त इतना
कटता नहीं ।
95
चीन के काज
महामारी की गाज
जग पे गिरी।
96
लाॅकडाउन
बेबस मजदूर
गाँव भी दूर।
97
भीतर भूख
बाहर है कोरोना
जायें तो कहाँ ।
98
मंदिर बंद
खुले मदिरालय
झूमते भक्त ।
99
युवा रवानी
मुश्किल को करती
पल में पानी