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रिश्ते और खोज स्नेह / ओम व्यास
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हर परिचय में
ढूँढता है
आदमी रिश्ते
और
रिश्तों में ढूँढता है
नेह का
एक टुकड़ा।
दुर्लभ सा हो गया है
वह
जिसे ढूँढता है आदमी,
पर
नकार कर वह सतत खोजता है
हर युग में हर समय
रिश्त जो पैदा होते है
नित नये ढंग से
और
कितनी ही बार
मर जाते है
पैदा होने से पहले ही।
स्नेह...
जो आवश्यक नहीं।
अनुबंध भी नहीं
रिश्तों के साथ
असीमित है
वह रेल के सहयात्री से।
पशुओं तक
सहज
पर फिर भी
खोजता है
आदमी
एक टुकड़ा प्यार का
रिश्तों में
निरन्तर।