आह / स्तिफ़न मलाहमे / अनिल जनविजय
ओ शान्त बहन मेरी ! ओ प्रिय बहना !
मैं झाँक रहा तेरे मन में, देख रहा तेरा दहना
सब पत्ते पीले पड़ गए, सबने पतझड़ है पहना
आसमान की ओर लगी है दिव्य दृष्टि तुम्हारी
झलक रही है खुलकर बग़ीचे की उदासी गाढ़ी
जल की श्वेत धार बहती है सागर के नीले तट पर
लाजूर<ref>L’Azur — दक्षिण-पूर्वी भूमध्य सागर के किनारे स्थित फ़्रांसीसी तट, जहाँ पानी एकदम नीला है।</ref> के कोमल तट पर छलके निर्दोष पीत अक्तूबर
झड़ गिरे पेड़ों से पत्तियाँ, जैसे उड़ें हवा में नवि<ref>नट</ref>
इन-बड़े सरोवरों में झलके उनकी अनन्त अलस छवि
जमा हुए मृत जल पर, गिरकर तड़पें जैसे कोई पशु
अपनी दीर्घ पीत किरणों को समेटे डूबता हुआ अंशु
12 मई 1866
मूल फ़्रांसीसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल फ़्रांसीसी भाषा में पढ़िए
Stéphane Mallarmé
Soupir
Mon âme vers ton front où rêve, ô calme sœur,
Un automne jonché de taches de rousseur,
Et vers le ciel errant de ton œil angélique
Monte, comme dans un jardin mélancolique,
Fidèle, un blanc jet d'eau soupire vers l'Azur !
-- Vers l'azur attendri d'octobre pâle et pur
Qui mire aux grands bassins sa langueur infinie
Et laisse, sur l'eau morte où la fauve agonie
Des feuilles erre au vent et creuse un froid sillon,
Se trainer le soleil jaune d'un long rayon.
May 12, 1866.