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हर सुबह / रमेश पाण्डेय

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द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स


3.

हर सुबह

दाल का अदहन चढ़ाकर

माँ चावल बीनने बैठ जाती


भूसी, किनकी, कंकड़ एक-एक कर ज़मीन पर गिरते


चमकती आँखों से भूख और गौरैया

आंगन में फुदकने लगते

दाल चुरती कि

हरदियाइन महकने लगता पूरा बरामदा


गौरैया और चकती आँखों से भूख

घर के कोने-कोने में

महक के साथ समा जाते


(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है