भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने में घर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:30, 5 जनवरी 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक था चिड़ा
वर्षा-पानी लू-लपट में
उड़ा करता
दूर-दूर देश को
लाता तिनके चुनकर
नीड़ बनाता
मन ही मन हर्षाता
कभी आँधी -तूफ़ान
बिखेर देते
कभी शैतान बच्चे
तोड़कर तहस-नहस कर देते
कभी लम्बी चोंच वाले कौए
नीड़ पर कब्ज़ा कर लेते
बेचारा चिड़ा
दूसरे पेड़ की डाल पर बैठे
टुकुर-टुकुर ताकता रहता

चिड़िया चिल्लाती रह जाती
चिड़े को निकम्मा और अभागा
कहकर कोसती रहती।
दिन बीते
महीने बीते
निकम्मा चिड़ा
नीड़ बनाता रहा
घर सजाता रहा
बिना रुके ,बिना थके,
पर आज तो हद हो गई
पड़ोसी पाखी
एक-एक कर सब चले गए
बनाए सारे नीड़
बिखर गए
देखता रह गया अपलक
कभी झुलसता,भीगता, ठिठुरता
ठूँठ पर बैठा चिड़ा
घर का सपना लिये
सपने में घर देखते हुए।