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प्रीत के पाँव / सुरंगमा यादव

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61
साँसों की पूँजी
बन्द न कर सकी
कोई तिजोरी।
62
बजती रही
समय सरगम
अबाध क्रम।
63
शब्द दो-चार
प्रकट कर देते
भाव-विचार ।
64
भीड़ है बड़ी
मानवता की कमी
फिर भी पड़ी ।
65
सत्य अटल
मिलता कर्मफल
आज या कल।
66
पाषाण जैसा
मानव मन हुआ
आँसू न दया।
67
श्रमिक भाग्य
श्रम की पूँजी हाथ
बारहों मास।
68
उजड़े बाग
प्रदूषित नदियाँ
मानव जाग।
69
करे उजाड़
अहंकार की बाढ़
रिश्तों का गाँव ।
70
वर्षा की झड़ी
मजदूर के घर
ठण्डी सिगड़ी।
88
प्रीत के पाँव
बिन पायल बाजें
सुनता गाँव