भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुज़री पीढ़ी / अजित कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:22, 11 अक्टूबर 2008 का अवतरण
दूकान बढाने के लिए मजबूर एक मालिक
शासन को, नियम को,
उनके रक्षकों
और
अपने मातहतों को
भरपूर गालियाँ दे चुकने के बाद
अब
रोशनियाँ बुझाते
और
ताले बंद करते हुए
देखो । देखो ।
कैसे कोस रहा है उसी दूकान को ।