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हाइकु / शिवजी श्रीवास्तव / कविता भट्ट

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1
गुलमोहर
कड़ी धूप में खड़ा
वीर सैनिक।
 
गुलमोर च
तैला घाम माँ खड़ू
वीर फौजी-सी
2
विद्या का ओज
हरी पत्तियों पर
कोमल ओस।

बिद्या कु ओज
हौरी पत्तियों परैं
कुंगळी ओंस
3
झरी चाँदनी
झरे हरसिंगार
धरा निहाल।

खते जुनाळि
झौड़ी हरसिंगार
पिर्थी बग्छट
4
प्राची है लाल
धरती ने सजाई
अपनी माँग।

पुरब लाल
पिर्थी न सजैयाली
अपड़ी स्यूँद
5
स्नेहिल स्पर्श
रच रहे नयन
दिल का दर्द।

माया माँ छुएँ
रचणी छन आँखी
हिरदै पिड़ा
6
जीवन -संध्या
हे! अस्ताचलगामी
बाँट लो दर्द।

जिंदगी- रूम्क
हे डुबदरा सुर्ज
बाँट दि पिड़ा
7
मन को मार
झेल रहे हैं रिश्ते
व्यंग्य बौछार।

मन मारी कि
झेंन्ना छन रिस्ता त
टौंखाँणु मार
8
सुनो धरती
हवा- पानी की रक्षा
मनु का काम।

सूँण पिरथी
हवा-पाणी रगछा
मन्ख्यों कु काम
9
सहमी चिड़ी
पाकर प्रताड़ना
सबसे भिड़ी।

डौंरीं प्वथली
पै कैं प्रताणन्ना जु
सब्बु सि लौड़ी
10
शब्दों से कोरे
प्रेम -ग्रन्थ के पन्ने
सुवास भरे।

सब्दु सि क्वारा
मायै पोथी का पन्ना
खुसबो भर्यां
11
गिरि से गिरी
गिरकर भी चली
कर्मठ सरि।

पाड़ू-लमडी
लमडीक बि चन्नी
किसाण गंगा
12
स्वप्न का सार
मन की चौखट को
करे न पार।

स्वीणा कु सार
मना संघाड़ सन
करू न पार।
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