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हाइकु / सीमा सिंघल / कविता भट्ट

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1
बो देना बीज
धरा की गोद सूनी
प्रकृति कहे !

ब्वे द्यान बीज
पिर्थी कि खुख्लि सुन्न
पर्किर्ती बुन्नी
2
कुल्हाड़ी मार
गिराया जो पेड़ को
चीखी थीं जड़ें !

कुलाड़ी मारी
ढ़ळाइ जु डाळु
किलैन जौड़
3
अमृत -बूँद
माँ लगती मन को,
तृप्त संसार !

अमिर्त बुन्द
ब्वे लगदी मन तैं
तिर्पत दुन्या
-0-