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स्वागत / नाज़िम हिक़मत / सुरेश सलिल

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बच्ची, तुम्हारा स्वागत !
अब तुम्हारी बारी है जीने की ।
तुम्हारे लिए वे बिछा रहे हैं चेचक, खसरा,
कुकुरखाँसी, मलेरिया, टीबी, कैंसर
                                और भी बहुत कुछ
भूचाल, बाढ़ें, सूखा, और भी बहुत कुछ
टुकड़ा-टुकड़ा दिल, पियक्कड़ी,
                                और भी बहुत कुछ
लाठियाँ, क़ैदख़ानों के दरवाज़े,
                                और भी बहुत कुछ ।
बच्ची, तुम्हारा स्वागत !
अब तुम्हारी बारी है जीने की ।
तुम्हारे लिए वे बिछा रहे हैं शोशलिज़्म-कम्युनिज़्म
                                      और भी बहुत कुछ ।

१० सितम्बर १९६१

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल