भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता रौ मूंन / चंद्रप्रकाश देवल
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 17 जुलाई 2022 का अवतरण
म्हैं पलकां बिछावूं
जित्तै-जित्तै औ मुहावरौ
कोस सूं निकळ बूहौ जावै
म्हैं सांयत गुणमुणावूं
जित्तै-जित्तै अेक जुद्ध
कमीज री बांह सूं निकळ
लड़-भिड़ घायल कर जावै
म्हैं अरदास में माथौ निंवावूं
जित्तै-जित्तै अेक वरदान
भींत माथला देवां रौ पाठौ फड़फड़ाय
म्हैं हेलौ पाड़ण थावस उचारूं
जित्तै-जित्तै इण सबद सूं निकळ
अेक अरथ बेगौसीक
म्हनै अणूंतौ डिगपच कर जावै
सेवट कविता नै सिंवरण री मन में जचावूं
जित्तै-जित्तै वौ जिकौ उणरौ मूंन व्है
भक्क देणी रो चवड़ै व्है जावै।