भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस दुनिया में / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:54, 8 जनवरी 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस दुनिया में
जैसे भी हो
तुम उतना ही पाओगे।
जितने पल तक
निर्भय होकर
जितना विष तुम पी जाओगे।

जीना है यदि
कोई मजबूरी
कर लो कम विष से अपनी दूरी
विषधर फैले यहाँ-वहाँ
तुम खुद को कहाँ छुपाओगे।

मन है जब तन में
रोना होगा
जितना पाया
उतना खोना होगा
गीतों में है
जब दर्द भरा
हँसी कहाँ से फिर लाओगे।
(9-11-2001: वस्त्र-परिधान अंक 48)