मैं ! प्रभा...... / अजय कुमार
जी हाँ मैं प्रभा...
यहाँ
'छन्नू लाल मन्नू लाल एकाउन्ट्स फर्म'
जो इस इमारत की तेरहवीं
मंजिल पर है
में पिछले कई सालों से
एक कंप्यूटर ऑपरेटर हूँ
नहीं मुझे पता नहीं
महिला सशक्तीकरण से
पड़ते किसी असर का
मैं अख़बार भी नहीं पढ़ती
समय कहाँ मिलता है
मैं सिर्फ चुपचाप
ऊपर कोने वाले केबिन में
काम में लगी रहती हूँ पूरा दिन
शाम को मेरी गर्दन
और कंधे खूब दर्द करते हैं
नहीं मुझे पुरुषों के बराबर नहीं चलना
उनके आगे भी नहीं
और पीछे भी नहीं
मैं उनसे बस एक दूरी बनाकर
चलना चाहती हूँ
नहीं मेरे पास पर्स में
नहीं रहता कोई मिर्च पाउडर
न कोई छोटा चाकू
और मैं कराटे भी नहीं जानती
हां मैं हर नजर पहचानती हूँ
जो भी उठती है मेरी तरफ
नहीं मुझे सबसे ज्यादा दिक्कत है
मेरे पिता की बेबस
और कातर नजरों से
जो मुझे हर दिन ऑफिस आते जाते देखते हैं
मुझे पता है उनकी दृष्टि क्या कहती है
तेरा ब्याह तो कर दूँ बेटी
पर फिर घर खर्च कैसे चलेगा...
नहीं मैं और बात नहीं कर सकती
खत्म कीजिए इन्टरव्यू
अभी कुछ सामान और खरीदना है
जल्दी घर पहुँचना है
बहुत सा काम
घर जा कर भी करना है
फिर सुबह जल्दी उठना है
हर रोज की तरह
8.30 की लोकल पकड़नी है
देर से दफ्तर पहुँचने पर
बहुत डाँडांट पड़ती है
काम से निकाल देने की धमकी भी......