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नया उजाला / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु

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लेकर सूरज
उतरा है आँगन में।
खुले हज़ारों नए झरोखे
दर्पण जैसे मन में।।
पार किए हैं
बीहड़ वन के
नुकीले हमने शूल
पीछे छोड़ी
उड़ी देर तक
थी जो राह में धूल।
पंछी बनकर उतर पड़े हैं
 हम अब नील गगन में।।
बीत गया जो
लेकर उसको
आँसू कौन बहाए
नए साल में
नई आस की
दुनिया एक बनाएँ
बरसेगा घर-घर उजियारा
सबके ही जीवन में।