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रिश्ते रेतीले /रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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बिसरा दो
रिश्ते रेतीले
मन के पाहुन को
क्या बहकाना,
तुम गढ़ लो कोई
सभ्य बहाना
पल -दो पल
ऐसे भी जी लें।
अनीति-नीति का
मिट रहा अन्तर
पुष्प बनो या
हो जाओ पत्थर ;
अर्थहीन सब
सागर- टीले ।
यदि मुकर गई
नयनों की भाषा
साथ क्या देगी
पंगु अभिलाषा;
बूँद-बूँद पीड़ा-
को पी लें ।