भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन के रंग / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
83
जीवन के रंग
पतझर के संग
साथ निभाएँ।
84
गौर या पीत
न होना भयभीत
खिली मुस्कान।
85
नियति -लेख
लिख -लिख मिटाए
तख्ती को पोते।
86
थका है तन
फिर -फिर उमगे
पागल मन।
87
आओ चलदें
पीछे भी मुसाफिऱ
उन्हें बल दें।
88
ख़ुद से बातें
ख़ुद की शिकायतें
बीती हैं रातें।
89
छूटें हैं पीछे
जिनके भी आँगन
हमने सीचे।
90
ओ मनमीत!
ढूँढते हैं तुमको
बावरे गीत।
91
लुटीं पत्तियाँ
नंग- धड़ंग पेड़
लगें बेहया।
92
टीवी क्या आया
धूल खाती रेडियो
कोने में पड़ी।
93
जमी है झील
मुर्गाबी को ठंडक
होती न फील।
94
चुप है पार्क
बार- बार पूछता
कहाँ हैं बच्चे?
95
खिंचा सन्नाटा
किस विषधर ने
धोखे से काटा!
96
तुम हो मौन
अम्बर भी चुप है
चुप है पौन।
8/12/2024