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घर / कुँअर बेचैन
Kavita Kosh से
घर
कि जैसे बाँसुरी का स्वर
दूर रह कर भी सुनाई दे।
बंद आँखों से दिखाई दे।
दो तटों के बीच
जैसे जल
छलछलाते हैं
विरह के पल
याद
जैसे नववधू, प्रिय के-
हाथ में कोमल कलाई दे।
कक्ष, आँगन, द्वार
नन्हीं छत
याद इन सबको
लिखेगी ख़त
आँख
अपने अश्रु से ज्यादा
याद को अब क्या लिखाई दे।
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।