Last modified on 10 दिसम्बर 2010, at 23:04

ख़ुद्दार और सनकी / पीयूष दईया

Sumitkumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 10 दिसम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाणक्य मित्र की सिखावन रहती

गेंद अपने पाले में रखनी चाहिए
हमेशा
सुनता वह कवि गर्वीला
ख़ुद्दार मूर्ख का सनकी चेला
उछल-उछल
टप्पे-टप्पे होती गेंद को
रोक लेता हर बार
डाल आता फिर
अन्यों के पाले में

रहता
यूँ ख़ुश-ख़ुश सनकी चेला
और हँसता वह
ख़ुद्दार मूर्ख

नेपथ्य से