भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर / कुँअर बेचैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:48, 4 जनवरी 2009 का अवतरण
घर
कि जैसे बाँसुरी का स्वर
दूर रह कर भी सुनाई दे।
बंद आँखों से दिखाई दे।
दो तटों के बीच
जैसे जल
छलछलाते हैं
विरह के पल
याद
जैसे नववधू, प्रिय के-
हाथ में कोमल कलाई दे।
कक्ष, आंगन, द्वार
नन्हीं छत
याद इन सबको
लिखेगी ख़त
आँख
अपने अश्रु से ज़्यादा
याद को अब क्या लिखाई दे।