भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवि लोग / अग्निशेखर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 31 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसों से भूखी हैं
कविताएँ
कवि लोग करवा रहे हैं
उनसे बंधुआ मज़दूरी
शोषण कर रहे हैं
भुक्खड़ कवि
और आलोचक सो रहे हैं
चालान की बहियों पर

फड़फड़ा रहे हैं ज़मीन पर पड़े
सूखे पतझड़ी पत्ते।
बाज़ार में
महंगे दामों पर भी उपलब्ध नहीं है
कविता की आदिम ख़ुराक
न उसकी प्यास के लिए
बची है मैल से कोई नदी