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माचिस की डिबिया / सरोज परमार

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सड़क पर पड़ी
ख़ाली डिबिया
माचिस की
समेटे है अपने इर्द-गिर्द
एक इतिहास

इसकी किसी तीली ने
चूल्हा सुलगाया होगा
छौंक की गंध घर-भर की
भूख को चमकाया होगा
किसी तीली से सुलगी होगी बीड़ी
खनजी होगी हँसी
बतियायी होंगी चिंताएँ कल की

एक तीली ने
घासलेट के कुप्पे से सट कर
पी लिया होगा अंधेरा
कुछ तीलियाँ गिराने के एवज में
खाया होगा तमाचा मुन्नी ने
कुछ फुस्स हुई कुछ सील गई पड़ी-गली
भरी बरसात में

कौन जाने किसी तीली ने
पल्लू को छू कर
तन्दूरी चिकन बनाया होगा
किसी भरी-पूरी लड़की को.