भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डर लगता है / शक्ति चटोपाध्याय
Kavita Kosh से
59.95.171.191 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:38, 10 फ़रवरी 2009 का अवतरण
एक आदमी
अचानक ताली बजाकर शब्द करता है
क्योंकि पत्थर को देख उसे डर लगता है
उसे डर लगता है
कि कहीं स्वयं वह पत्थर तो नहीं !
आदमी और पत्थर
यदि भर लेंगे एक दूसरे को बांहों में
तो उससे पैदा होगी आग !
इसीलिए डरता है आदमी
आदमी को देखकर
वह घने जंगलों में जाता है
पर नहीं डरता
वहां वह देखता है बाघ के पंजों के निशान
पर वे उसे लगते हैं
लक्ष्मी के पैरों की छाप की तरह शुभ
पर आदमी को डर लगता है
धूप से,अगरबत्ती की गंध से
आदमी को डर लगता है
आदमी से !