भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फाँसें / आरागों
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 10 मार्च 2009 का अवतरण
1
रोक दे कराहना कि कुछ न होगा
इससे अधिक अजीब
कि कराहता हो कोई
और वह रोता न हो
2
मैं घूमता हूँ
अपने भीतर साये का खंजर लिए
मैं घूमता हूँ
अपनी यादों में एक बिल्ली लिए
मैं घूमता हूँ
मुरझाए फूलों का गुलदस्ता लिए
मैं घूमता हूँ
तार-तार हुए कपड़े पहन
मैं घूमता हूँ
अपने दिल में बड़ा-सा घाव लिए
3
यकीन करें मुझ पर
सबसे बुरी बात है यह
कि सोचता है कोई
4
जितनी
छोटी हो
कविता
उतना ही
ज़्यादा बसेगी
मन में
मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी